Anu Tel / Tailam (Quality item made using Rain Water) / अणु तैलं – (वर्षा के जल से निर्मित सर्वश्रेष्ठ गुणवत्ता) – 15 ml – Now Available
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आयुर्वेद में वर्णित अद्भुत अणु तैलं नस्य के रूप में प्रयोग हेतु अर्थात नाक में बूँद के रूप में डालने हेतु
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आयुर्वेद में वर्णित अद्भुत अणु तैलं नस्य के रूप में प्रयोग हेतु अर्थात नाक में बूँद के रूप में डालने हेतु
अणुतैलं नस्य लाभ: (स्त्रोत – चरक संहिता)
जो व्यक्ति शास्त्रोक्तविधि से समय पर नस्य का प्रयोग करता है उसके
- इस तैल का समुचित काल में विधिपूर्वक प्रयोग करने से मनुष्य उत्तम गुणों को प्राप्त करता है
- आँख कान और नाक की शक्ति नष्ट नहीं हो पाती
- सिर आदि के बाल एवं दाढ़ी मूँछ सफ़ेद अथवा कपिल (भूरे) वर्ण के नहीं होते और न ही गिरते है अपितु विशेष प्रकार से बढ़ने लगते है
- मर्दनऐंठा – Torticollis, शिर: शूल – Headache, अर्दित – Facial Paralysis, हनुस्तंभ – Lock-Jaw, पीनस – Chronic Coryza, आधासीसी – Hemicrania, शिर: कंपः जैसे रोगो में अत्यंत लाभकारी
- इसके साथ शिर: कपाल से सम्बंधित शिराएं, संधियाँ, स्नायु और कण्डराएं इस तक के सेवन से तृप्त एवं बल को प्राप्त होती है
- मुखमण्डल प्रसन्नता से भरा हुआ दिखता है
- स्वर स्निग्ध, स्थिर तथा गंभीर हो जाता है
- समस्त इन्द्रियाँ निर्मल, शुद्ध एवं बलयुक्त हो जाती है
- वृद्धावस्था आने पर भी शिर: प्रदेश में बुढ़ापे का प्रभाव सबल नहीं हो पाता (जैसे – बाल सफ़ेद होना, चेहरे पर झुर्रियां पड़ना आदि)
- इन्द्रियों को अपने वश में रखें तो यह तैल तीनो दोषो को संतुलित करता है।
- गले से ऊपर होने वाले विकार सहसा आक्रमण नहीं करते एवं वृद्धावस्था प्राप्त होते हुए भी उत्तमांगो को बुढ़ापा नहीं सताता
अणुतैल निर्माणविधि: – अष्टांगहृदयं (20वां अध्याय, नस्यविधिरध्याय:)
जीवंतीजलदेवदारुजल्दत्वक्सेव्यगोपीहिमं
दार्वीत्वङ्मधुकप्लवागुरुवरीपुण्ड्राहवबिल्वोत्पलम् ।
धावन्यौ सुरभिं स्थिरे कृमिहरं पत्रं त्रुटिं रेणुकां
किञ्जल्कं कमलाद्वलां शतगुणे दिव्येऽम्भसि क्वाथयेत् ।। ३७।।
तैलाद्रसं दशगुणं परिशेष्य तेन तैलं पचेत सलिलेन दशैव वारान् ।
पाके क्षिपेच्च दशमे सममाजदुग्धं नस्यं महागुण मुशन्त्यणुतैलमेतत् ।। ३८ ।।
अणुतैल घटक:
वर्षा का जल, बकरी का दूध, जीवन्ति, नेत्रबाला, देवदारु, केवटीमोथा, दालचीनी, खस, सारिवा, चन्दन, दारुहल्दी, मुलेठी, नागरमोथा, अगरु,
त्रिफला, पुंडेरिया, बेलगिरी, कमल, कण्टकारी, वनभण्टा, रासना, शालपर्णी, पृष्ठपर्णी, वायविडंग, तेजपत्ता, छोटी ईलायची, रेणुका, कमल का केसर, बला
- अणुतैलं नस्य प्रयोग का उचित विधि :
प्रत्येक व्यक्ति तो प्रतिवर्ष जब आकाश स्वच्छ हो अर्थात आकाश में बादल न हो, ऐसी स्थिति में वर्षा (जुलाई-अगस्त), शरद (अक्टूबर-नवंबर) एवं वसंत (मार्च-अप्रैल) ऋतुओं में अणुतैलं का नस्य रूप में सेवन करना चाहिए। - अणुतैल की 5 बूँद नाक में नस्य रूप में डालें
- इस प्रकार वर्षा (जुलाई-अगस्त), शरद (अक्टूबर-नवंबर) एवं वसंत (मार्च-अप्रैल) ऋतुओं में नस्य प्रति तीसरे दिन लेना चाहिए (एक बार लेने के पश्चात अगली ऋतु में लेने के बीच में 6 माह का अंतर होना उचित है)
- नस्य लेने वाले पुरुष को निर्वात (जहाँ वायु से सीधा संपर्क न हो) स्थान में रहना चाहिए अर्थात उष्ण स्थान में रहे, हितकारी भोजन (घी युक्त, सुपाच्य) का सेवन करें
- इन्द्रियों को अपने वश में रखें तो यह तैल तीनो दोषो को संतुलित करता है।
- इन्द्रियों की बलपूर्वक वृद्धि करता है।
- इस तैल का समुचित काल में विधिपूर्वक प्रयोग करने से मनुष्य उत्तम गुणों को प्राप्त करता है
- समस्त इन्द्रियाँ निर्मल, शुद्ध एवं बलयुक्त हो जाती है
- कंधे से ऊपर होने वाले विकार सहसा आक्रमण नहीं करते एवं वृद्धावस्था प्राप्त होते हुए भी उत्तमांगो को बुढ़ापा नहीं सताता
ध्यान रहे:
नाक में अणु तैलं की बूँद डालने के बाद 1 से 2 घंटे तक आपको गले में थोड़ा दर्द, कफ आना, अधिक छींक आना होगा
जो की स्वाभाविक है अतः निश्चित रहे इसका अर्थ है कि नस्य अपना कार्य अच्छे से कर रहा है
बहुत ही अच्छा है।
धन्यवाद गोधूलि
Very powerful and authentic product
great product
First time
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